Tuesday, October 22, 2019

बाथरूम में कैसी कैसी अजीब आदतें अपनाते हैं लोग

मिस्र के मशहूर कॉमेडियन बासेम यूसेफ़ जब ब्रिटेन में अपना पहला शो कर रहे थे, तो वो मंच पर एक बिडेट लेकर आए.
यूसेफ़ ने कहा कि 'हम अरब के लोग जब विदेश दौरे के लिए पैकिंग करते हैं, तो तीन चीज़ें रखना नहीं भूलते. एक तो पासपोर्ट, कुछ नकदी और जो तीसरी चीज़ हम हमेशा साथ रखते हैं, वो हाथ से पकड़ी जाने वाली बिडेट है.'
यूसेफ़ ने हवा में एक शौचालय में लगने वाला पाइप यानी बिडेट लहराया, जिससे शौच के बाद धोने के लिए पानी स्प्रे करते हैं. अरबी भाषा में इसे शत्तफ़ और अंग्रेज़ी में 'बम गन' कहते हैं.
यूसेफ़ ने पश्चिमी देशों का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि यूं तो पश्चिमी देशों ने बहुत तरक़्क़ी कर ली है. लेकिन, जब बात शरीर के पीछे के हिस्से की आती है, तो पश्चिमी देश, बाक़ी दुनिया से बहुत पिछड़े हुए हैं.
दुनिया के तमाम लोग और बहुत से हिंदुस्तानी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.
हम हिंदुस्तानी हाजत रफ़ा करने, या शौच करने या फिर पॉटी करने के बाद धोते हैं. मगर अमरीकी और ब्रितानी लोग, इसके बाद टिश्यू पेपर इस्तेमाल करते हैं और धोने के बजाय पोछ कर काम चला लेते हैं.
दुनिया के बहुत से लोगों को पश्चिमी देशों के लोगों की ये आदत अजीब लगती है. आख़िर पानी से बेहतर सफ़ाई होती है. और ये काग़ज़ के मुक़ाबले नरम भी ज़्यादा होता है.
एक दौर ऐसा भी था, जब प्राचीन यूनानी सेरैमिक के टुकड़ों से शौच
ऑस्ट्रेलिया के रिसर्चर ज़ुल ओथमैन कहते हैं कि उनके देश में रहने वाले मुसलमानों ने टॉयलेट पेपर के साथ-साथ पानी का भी इस्तेमाल करना सीख लिया है. इसके लिए वो बाथरूम में या तो बिडेट लगवा लेते हैं. या फिर जग में पानी लेकर हाजत के लिए जाते हैं.
नवी मुंबई की रहने वाली आस्था गर्ग भी पश्चिमी देशों की टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने की आदत की शिकार हुईं.
जब आस्था सैन फ्रांसिसको में काम करने गईं, तो उन्होंने शौचालय में मग की तलाश शुरू की. वो वहां मौजूद ही नहीं था. शौचालय में पानी का इंतजाम ही नहीं था. बाद में उन्हें एक भारतीय रेस्टोरेंट में जाना पड़ा.
आस्था कहती हैं कि कुछ भारतीयों ने शौच के बाद टिश्यू पेपर का प्रयोग करने की आदत डाल दी है. लेकिन ज़्यादातर भारतीय अब भी पानी को ही तरज़ीह देते हैं. किसी भी भारतीय मूल के लोगों के घरों के शौचालय में पानी का इंतज़ाम होता है.
वहीं, ओथमैन कहते हैं कि ब्रितानियों तो पॉटी के बाद टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने की ज़बरदस्त ज़िद होती है.
उनके एक दोस्त ने टॉयलेट पेपर न मिलने पर तो 20 पाउंड के नोट का इस्तेमाल कर लिया. यही वजह है कि अमरीका में आज सबसे ज़्यादा टॉयलेट पेपर इस्तेमाल होता है.
आस्था गर्ग कहती हैं कि टॉयलेट पेपर के इस्तेमाल से एक समस्या और भी पैदा होती है. लोगों के टॉयलेट चोक हो जाते हैं.
टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल चीन में भी आम है. आख़िर चीन में ही काग़ज़ का आविष्कार हुआ था. लेकिन इसका प्रयोग अमरीकी टॉयलेट पेपर निर्माताओं और विज्ञापन देने वालों ने ज़्यादा किया.
शौच के बाद सफ़ाई के तरीक़े पर ही नहीं, कैसे हाजत रफ़ा करें, इस पर भी विवाद है. पश्चिमी देशों में कमोड का चलन ज़्यादा है, जिस पर आप आराम से बैठ कर किताब या अख़बार पढ़ते हुए फ़ारिग हो सकते हैं.
वहीं भारत समेत बहुत से देशों में उकड़ू बैठकर हल्के होने का चलन है.
चीन से आकर अमरीका में बसे कैसर कुओ के सामने भी यही दुविधा थी. वो बताते हैं कि चीन में हान साम्राज्य के दौरान दोनों ही तरह के शौचालयों का प्रयोग चलन में था.
आज भी दोनों ही विकल्प चीन के अलग-अलग क्षेत्रों में आज़माए जाते हैं. लेकिन, चीन की ज़्यादातर आबादी पुराने शौचालयों यानी उकड़ू बैठने वालों को ही तरज़ीह देती है.
एक अनुमान के मुताबिक़, दुनिया की दो तिहाई आबादी उकड़ू बैठकर ही फ़ारिग होती है. ये साफ़-सफ़ाई पसंद लोगों के लिए भी मुफ़ीद है. उकड़ू बैठने से शौचालय से आप का ताल्लुक़ नहीं होता, जिससे कीटाणुओं का इन्फ़ेक्शन होने की आशंका कम होती है. ब्रिटेन की बहुत सी महिलाएं सार्वजनिक शौचालयों को उकड़ू बैठकर ही इस्तेमाल करती हैं.
उकड़ूं बैठने से आप के फ़ारिग होने की प्रक्रिया भी आसान हो जाती है. यही वजह है कि चीन के बहुत से बुज़ुर्ग घुटनों के बल बैठने के मामले में युवाओं को मात देते हैं.
उधर, अमरीकियों का भी जवाब नहीं, उन्होंने शौच पर जाने को भी मनोरंजन का माध्यम बना लिया है. कोई अख़बार लेकर जाता है, तो कोई किताब पढ़ने बैठ जाता है. शौचालय में मोबाइल लेकर वीडियो गेम भी कई लोग खेलते रहते हैं. हालांकि हमारे हिंदुस्तान में शौच के वक़्त पढ़ना लिखना बुरा माना जाता है. चीन में भी यही तरबीयत दी जाती है.
मगर, अंग्रेज़ियत या इस पश्चिमी ख़ब्त के मुरीद कुछ ब्राउन साहिब लोग अख़बार पढ़ते हैं हाजत के वक़्त, समय बचाने के लिए.
मलेशिया में सार्वजनिक जगहों पर दोनों ही शौचालयों की सुविधा मिलती है. जिसे जैसा पसंद हो, वो इस्तेमाल कर ले.
के बाद सफ़ाई करते थे. वहीं, अमरीका पहुंचे शुरुआती प्रवासी शौच के बाद साफ़ करने के लिए, मक्के के ख़ाली भुट्टे का प्रयोग करते थे. बहुत से देशों के लोग शौच के बाद पानी का इस्तेमाल करते हैं.
यूरोपीय देश फ्रांस ने तो दुनिया को बिडेट का आविष्कार करके दिया. हालांकि ये यंत्र अब फ्रांस से विलुप्त हो रहा है. लेकिन, आज भी इटली, अर्जेंटीना और दूसरे देशों में इसका ख़ूब इस्तेमाल होता है. बसेम यूसेफ़ की बम गन फिनलैंड में आम है.
लेकिन, पश्चिमी देशों में ज़्यादातर लोग टिश्यू पेपर का ही इस्तेमाल करते हैं. ख़ास तौर से अमरीका और ब्रिटेन के लोग. और उनकी ये आदत कई देशों में प्रचलित हो गई है. मशहूर इतिहासकार बारबरा पेनर ने अपनी किताब बाथरूम में इसे सैनिटरी साम्राज्यवाद कहा है.
लेकिन, ज़्यादातर मुस्लिम देशों में हाजत के बाद पानी का ही प्रयोग होता है. क्योंकि इस्लाम की शिक्षा में साफ़-सफ़ाई के लिए पानी के प्रयोग की सलाह दी गई है.
हालांकि 2015 में तुर्की के धार्मिक मामलों के निदेशालय ने फ़तवा जारी किया था कि अगर पानी न हो तो मुस्लिम लोग हाजत के बाद टॉयलेट पेपर प्रयोग कर सकते हैं. वहीं, जापान में दोनों ही विकल्प शौचालयों में पाए जाते हैं.