टॉलेमी के मुताबिक दुनिया चपटी और 70 डिग्री चौड़ी है. टॉलेमी को ये पता
था कि भारत, चीन यूरोप के पूरब में हैं. इसी जानकारी के आधार पर टॉलेमी ने
मानचित्र भी बनाया जिसकी बुनियाद पर 15वीं शताब्दी में खोजकर्ताओं ने अपना सफ़र शुरू किया.
टॉलेमी के नक़्शे की पहली कॉपी लैटिन में 1475 में
छपी थी. टॉलेमी को लोग गणितज्ञ, भूगोल का माहिर, और नजूमी (ज्योतिष) के
तौर पर जानते हैं जिसे दूसरी सदी में रोमन साम्राज्य में दुनिया का भूगोल
बताने का काम सौंपा गया था.
वर्षों तक टॉलेमी के भूज्ञान को ही सही
माना जाता रहा. लेकिन बदक़िस्मती से टॉलेमी के नक़्शों का ख़ज़ाना ग़ायब हो
गया. लिहाज़ा 13वीं सदी में बाइज़ेंटाइन साम्राज्य में मैक्सिमस प्लेनूडस
ने नए सिरे से दुनिया की खोज शुरू की.
चूंकि 1406 तक टॉलेमी की तमाम
जानकारियों को ग्रीक ज़बान से लैटिन भाषा में हाथ से लिख लिया गया था,
लिहाज़ा इन्हीं जानकारियों की बुनियाद पर नए सिरे से नक़्शे बनाए गए. की टॉलेमी की हस्तलिपियों में नक़्शे शामिल नहीं थी. इनमें सिर्फ़ अनुभव
के आधार पर लिखी जानकारियां थी. लेकिन बाद में जो नक़्शे बनाए गए उनमें
हाथ से रंग भी भरे गए.
जमीन दर्शाने के लिए पीला रंग और समुद्र के लिए नीला रंग इस्तेमाल हुआ.
तब प्रस्तावना, लेखक का नाम नहीं होते थे किताबों में
1500
से पहले की जितनी भी किताबें या हस्तलिपियां नक़्शों पर आधारित हैं. उन
सभी में वो पेज नहीं है जिस पर किताब की प्रस्तावना, किताब और लिखने वाले
का नाम, तारीख़ आदि लिखी रहती है.
इसका चलन 1500 के बाद प्रिंटिंग
के ज़माने में अलदुस मनुटियस ने शुरू किया था. वो पहला ऐसा शख़्स था जिसने
इटैलिक्स फ़ोन्ट का इस्तेमाल किया और क़रीब 130 किताबों को ग्रीक से लैटिन
भाषा में छापा.में जर्मनी के पेटरस अप्यानस ने कॉस्मोग्राफ़िया नाम की किताब लिखी जो
कि गणित के आधार पर भूज्ञान की बारीकियां बताती है. पेटरस को नक़्शे बनाने,
गणित और खगोलशास्त्र में महारात हासिल थी.
पेटरस की ये किताब 14
भाषाओं में 30 बार छापी गई. इसका पहला लैटिन संस्करण 1540 में छपा था.
कॉस्मोग्रेफ़िया की ख़ास बात थी कि इसमें वॉवेल्स का इस्तेमाल हुआ था और
इसमें घूमने वाले व्हील चार्ट थे.
ये चार्ट, पेपर की कई तहों से
बनाए गए थे. इसे शुरुआती एनलॉग कंप्यूटर और कैलकुलेटर की मिसाल के तौर पर
भी समझा जा सकता है. इसके सहारे राशियों के निशान, चांद-सूरज की चाल को
समझा जा सकता था. कॉस्मोग्राफ़िया समुद्री यात्रियों के लिए और भी कई अहम
जानकारियां मुहैया कराती थी.
इसके अलावा कॉस्मोग्राफ़िया दुनिया के
उस शुरुआती नक़्शे के लिए भी जानी जाती है जिसमें पहली बार उत्तरी अमरीका
के पश्चिमी किनारे को दर्शाया गया था.
इस दौर में धरती के नए नए
हिस्से खोजे जा रहे थे. अन्वेषकों से मिली जानकारी की बुनियाद पर बहुत तरह
के नक्शों की किताबें, एबेकस की किताबें, समुद्री रास्तों की किताबें लिखी
जा रही थीं. इन किताबों से सेनाओं को भी ज़मीनी और समुद्री रास्ते समझने
में काफ़ी मदद मिली.में पहला एटलस छपा था जिसका नाम था थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड. इसे पहला
आधुनिक नक़्शा भी कहा जाता है. इसे फ़्लेमिश स्कॉलर और भू-वैज्ञानिक
अब्राहम ऑर्टेलियस ने लिखा था.
पहली बार इस एटलस में मानचित्रों के
साथ विस्तार से जानकारी थी. नक़्शे, माहिर नक़्शानवीसों ने तैयार किए थे.
जिस जगह की जो ख़ासियत थी, उसके निशान भी बनाए गए थे.
मिसाल के लिए
रेगिस्तान दर्शाने के लिए वहां ऊंट और खजूर के पेड़ बनाए गए थे. नक़्शों की
छपाई के लिए पहली बार कॉपर प्लेट का इस्तेमाल किया गया था.
इन नक़्शों में इस्तेमाल रंगों में आज भी चमक है.
थियेटर
ऑफ़ द वर्ल्ड उस दौर के अमीरों के लिए जानकारी का ज़ख़ीरा थी. ये गाइड बुक
1570 से 1612 तक जर्मन, फ़ैंच, डच, लैटिन और भी बहुत सी ज़बानों में भी
छपी. इसकी क़ीमत भी काफ़ी थी.
थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड का किसी के पास
होना उसके बुद्दिजीवी और अमीर होने की निशानी समझा जाने लगा. इसमें बहुत से
मानचित्र ऐसे भी हैं जिनकी जानकारी का स्रोत आज किसी को नहीं पता है.
1570
में पहली बार थियेटर ऑफ़ द वर्ल्ड का वो संस्करण छपा, जिसमें 87 ऐसे
भू-वैज्ञानिकों और नक़्शानवीसों के नाम थे जिन्हें इन नक़्शों का स्रोत माना गया.
बाद में इस फ़ेहरिस्त में और भी कई नाम जुड़े और ये फ़ेहरिस्त 183 नामों की हो गई.
Monday, September 17, 2018
Wednesday, September 12, 2018
पांचवें टेस्ट में 118 रन से हारा भारत, 4-1 से इंग्लैंड के नाम रही सिरीज़
भारतीय टीम को केनिंग्टन ओवल टेस्ट में 118 रनों से हार का सामना करना पड़ा है. भारत को अपनी दूसरी पारी में
464 रनों के लक्ष्य का पीछा करना था मगर पांचवें दिन पूरी टीम 345 के स्कोर
पर आउट हो गई.
इसी के साथ पांच टेस्ट मैचों की यह सिरीज़ 4-1 से इंग्लैंड के नाम रही.इससे पहले इंग्लैंड ने बर्मिंगम, लॉर्ड्स और साउथैंप्टन टेस्ट में भी जीत हासिल की थी. भारत सिर्फ़ नॉटिंगम टेस्ट में ही मेज़बान टीम को हरा पाया.
पांचवें दिन का खेल शुरू होने पर भारत का स्कोर तीन विकेट के नुकसान पर 58 रन था. केएल राहुल और ऋषभ पंत ने शानदार शतक लगाए और छठे विकेट के लिए 204 रनों की साझेदारी करते हुए एक समय इंग्लैंड की उम्मीदों को कमज़ोर कर दिया. मगर आख़िरी सेशन में मेज़बान टीम ने ज़बर्दस्त वापसी की.चाय तक भारत का स्कोर पांच विकेट पर 298 रन था. मगर तीसरा सत्र शुरू होने के कुछ देर बाद ही केएल राहुल 149 रन के स्कोर पर आदिल रशीद को विकेट दे बैठे. इसके बाद भारत की पूरी कोशिश यह रही कि किसी तरह टेस्ट को ड्रॉ किया जाए.
राहुल का साथ दे रहे पंत ने टी ब्रेक से पहले रशीद की गेंद पर छक्का लगाकर शतक पूरा किया था. यह उनका पहला टेस्ट शतक था. इसके साथ ही वह इंग्लैंड में टेस्ट में शतक लगाने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर भी बन गए. मगर उन्हें भी आदिल रशीद ने ही पेवेलियन भेजा.
राहुल और पंत के आउट होने के बाद भारत की उम्मीदें लगभग ख़त्म हो चुकी थीं. जिस समय ऋषभ पंत के तौर पर सातवां विकेट गिरा उस समय भारत का सकोर 328 दिन था. इसके बाद पूरी भारतीय महज 17 रन ही जोड़ पाई.
एंडरसन ने मोहम्मद शमी के रूप में अपना 564वां विकेट लिया और ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मेक्ग्रा को पीछे छोड़ दिया.
इंग्लैंड के एलेस्टर कुक मैन ऑफ़ द मैच चुने गए, जिन्होंने पहली पारी में 71 और दूसरी पारी में 147 रन बनाए. यह उनका आख़िरी टेस्ट मैच था. 33 साल के कुक ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का फ़ैसला कर लिया है.
पढ़ाई के मामले में हर बच्चा अलग होता है. कोई तेज़ होता है, तो किसी को समझने में वक़्त लगता है.
मज़े
की बात ये है कि स्कूल में कौन सा बच्चा तेज़ होगा और कौन औसत से कम होगा,
ये बात बच्चों के जीन पर निर्भर करती है. जीन के आधार पर ये भी अंदाज़ा
लगाया जा सकता है कि कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में कैसा परफॉर्म करेगा, किस
विषय में उसकी दिलचस्पी ज़्यादा होगी. लेकिन, ये बात बहुत कम ही लोगों को पता है कि हमारे जीन्स की बनावट और माहौल का असर बच्चे की आगे के बर्ताव और पढ़ाई में वो कैसा रहेगा इस बात पर पड़ता है.
इसके लिए ब्रिटेन के छह हज़ार जोड़ी जुड़वां बच्चों की पढ़ाई पर रिसर्च की गई. पढ़ाई में उनके स्तर पर गहरी निगाह रखी गई. देखा गया कि जो बच्चे प्राइमरी स्कूल में अच्छा करते हैं, वो आगे की पढ़ाई में भी बेहतर होते हैं.
ये रिसर्च जुड़वां बच्चों पर इसलिए की गई क्योंकि बच्चों की पढ़ाई पर जेनेटिक्स के असर को गहराई से मापा जा सके. एक जैसे दिखने वाले जुड़वां बच्चों के 100 फ़ीसद जीन्स एक जैसे होते हैं.
वहीं, जो जुड़वां बच्चे एक जैसे नहीं दिखते, उनके औसत 50 फ़ीसद जीन्स एक जैसे होते हैं. अब एक जैसे दिखने वाले जुड़वां बच्चे अगर पढ़ाई में एक जैसे स्तर को हासिल करते हैं, तो साफ़ है कि उनके जीन्स का पढ़ाई पर असर होता है. और अगर उनकी पढ़ाई के स्तर में फ़र्क़ होता है, तो उसकी वजह भी बच्चों के डीएनए में फ़र्क़ हो सकती है.
अगर बच्चों का स्कूल का ग्रेड प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी स्कूल तक एक जैसा ही रहता है, तो इसके पीछे बड़ी वजह बच्चों का जीन सीक्वेंस होता है.
बच्चों के पढ़ाई के स्तर में 70 फ़ीसद योगदान उनके डीएनए सीक्वेंस पर निर्भर करता है, तो 25 फ़ीसद उनके माहौल पर. बाक़ी का पांच फ़ीसद फ़र्क़ अलग-अलग दोस्तों और टीचर के होने से होता है.
अगर जुड़वां बच्चों के ग्रेड में बहुत उतार-चढ़ाव आया, तो इसकी बड़ी वजह ये रही कि उन जुड़वां बच्चों को पढ़ाई और रहन-सहन का अलग-अलग माहौल मिला.
आम तौर पर बच्चों की अच्छी या बुरी ग्रेड के लिए उनकी अक़्लमंदी के स्तर को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन, सच ये है कि बच्चे स्कूल में जो ग्रेड लाते हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह उनके जीन्स यानी डीएनए सीक्वेंस होते हैं.
हाल के दिनों में पढ़ाई के जीन्स से ताल्लुक़ को लेकर जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ ( ) की गई हैं. इन रिसर्च से ये पता चलता है कि छात्रों के कुछ ख़ास गुणों का ताल्लुक़ किस जीन से होता है. दिक़्क़त ये आई कि इस स्टडी से पढ़ाई से जिन जीन्स का ताल्लुक़ पाया गया, उनका असर महज़ 0.1 फ़ीसद था.
तो, एक और रिसर्च के ज़रिए बच्चों के जीनोम के पढ़ाई के स्तर से संबंध को मापा गया. इसे पॉलीजेनिक स्कोर कहते हैं. इसके आधार पर आज ये बताया जा सकता है कि कोई बच्चा स्कूल में कैसा परफॉर्म करेगा.
ख़ास तौर से ऐसे बच्चों के ग्रेड की तुलना हो सकती है, जिनका एक-दूसरे से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
इस पॉलीजेनिक स्कोर की मदद से उन छह हज़ार जुड़वां बच्चों की पढ़ाई के पूर्वानुमान लगाए गए. ये पूर्वानुमान जुड़वां लोगों के बारे में तुलनात्मक अध्ययन नहीं थे. बल्कि, इनके ज़रिए ये पता लगा कि दो अलग-अलग बच्चों के स्कूल में ग्रेड में कितना फ़र्क़ हो सकता है.
फिर उनकी सेकेंडरी एजुकेशन का ग्रेड कैसा रहने वाला है. इस पॉलीजेनिक स्कोर से एक बात तो साफ़ हो गई कि एक जैसे जीन वाले बच्चों की पढ़ाई में उपलब्धि कमोबेश एक जैसी ही आती है.
इस रिसर्च का एक बड़ा फ़ायदा ये हो सकता है, कि उन बच्चों की शुरुआत में ही मदद हो जाए, जो पढ़ाई में कमज़ोर रहने वाले हैं. आगे चलकर पॉलीजेनिक स्कोर और बच्चों के इर्द-गिर्द के माहौल की पड़ताल कर के ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस बच्चे को पढ़ाई में मदद की दरकार होगी. फिर उन्हें पढ़ाई में बेहतर करने के लिए ख़ास मदद मुहैया कराई जा सकती है.
हम डीएनए टेस्ट की मदद से बच्चों की पैदाइश के वक़्त ही पता लगा सकते हैं कि कोई बच्चा स्कूल की पढ़ाई में कैसा रहेगा. फिर शुरुआत से ही उस पर ज़्यादा ध्यान दिया जा सकेगा. पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों की शुरू से ही मदद कर के उन्हें ज़िंदगी में आगे चल कर कामयाब बनाया जा सकता है.
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