भारतीय टीम को केनिंग्टन ओवल टेस्ट में 118 रनों से हार का सामना करना पड़ा है. भारत को अपनी दूसरी पारी में
464 रनों के लक्ष्य का पीछा करना था मगर पांचवें दिन पूरी टीम 345 के स्कोर
पर आउट हो गई.
इसी के साथ पांच टेस्ट मैचों की यह सिरीज़ 4-1 से इंग्लैंड के नाम रही.इससे पहले इंग्लैंड ने बर्मिंगम, लॉर्ड्स और साउथैंप्टन टेस्ट में भी जीत हासिल की थी. भारत सिर्फ़ नॉटिंगम टेस्ट में ही मेज़बान टीम को हरा पाया.
पांचवें दिन का खेल शुरू होने पर भारत का स्कोर तीन विकेट के नुकसान पर 58 रन था. केएल राहुल और ऋषभ पंत ने शानदार शतक लगाए और छठे विकेट के लिए 204 रनों की साझेदारी करते हुए एक समय इंग्लैंड की उम्मीदों को कमज़ोर कर दिया. मगर आख़िरी सेशन में मेज़बान टीम ने ज़बर्दस्त वापसी की.चाय तक भारत का स्कोर पांच विकेट पर 298 रन था. मगर तीसरा सत्र शुरू होने के कुछ देर बाद ही केएल राहुल 149 रन के स्कोर पर आदिल रशीद को विकेट दे बैठे. इसके बाद भारत की पूरी कोशिश यह रही कि किसी तरह टेस्ट को ड्रॉ किया जाए.
राहुल का साथ दे रहे पंत ने टी ब्रेक से पहले रशीद की गेंद पर छक्का लगाकर शतक पूरा किया था. यह उनका पहला टेस्ट शतक था. इसके साथ ही वह इंग्लैंड में टेस्ट में शतक लगाने वाले पहले भारतीय विकेटकीपर भी बन गए. मगर उन्हें भी आदिल रशीद ने ही पेवेलियन भेजा.
राहुल और पंत के आउट होने के बाद भारत की उम्मीदें लगभग ख़त्म हो चुकी थीं. जिस समय ऋषभ पंत के तौर पर सातवां विकेट गिरा उस समय भारत का सकोर 328 दिन था. इसके बाद पूरी भारतीय महज 17 रन ही जोड़ पाई.
एंडरसन ने मोहम्मद शमी के रूप में अपना 564वां विकेट लिया और ऑस्ट्रेलिया के ग्लेन मेक्ग्रा को पीछे छोड़ दिया.
इंग्लैंड के एलेस्टर कुक मैन ऑफ़ द मैच चुने गए, जिन्होंने पहली पारी में 71 और दूसरी पारी में 147 रन बनाए. यह उनका आख़िरी टेस्ट मैच था. 33 साल के कुक ने टेस्ट क्रिकेट से संन्यास लेने का फ़ैसला कर लिया है.
पढ़ाई के मामले में हर बच्चा अलग होता है. कोई तेज़ होता है, तो किसी को समझने में वक़्त लगता है.
मज़े
की बात ये है कि स्कूल में कौन सा बच्चा तेज़ होगा और कौन औसत से कम होगा,
ये बात बच्चों के जीन पर निर्भर करती है. जीन के आधार पर ये भी अंदाज़ा
लगाया जा सकता है कि कोई बच्चा प्राइमरी स्कूल में कैसा परफॉर्म करेगा, किस
विषय में उसकी दिलचस्पी ज़्यादा होगी. लेकिन, ये बात बहुत कम ही लोगों को पता है कि हमारे जीन्स की बनावट और माहौल का असर बच्चे की आगे के बर्ताव और पढ़ाई में वो कैसा रहेगा इस बात पर पड़ता है.
इसके लिए ब्रिटेन के छह हज़ार जोड़ी जुड़वां बच्चों की पढ़ाई पर रिसर्च की गई. पढ़ाई में उनके स्तर पर गहरी निगाह रखी गई. देखा गया कि जो बच्चे प्राइमरी स्कूल में अच्छा करते हैं, वो आगे की पढ़ाई में भी बेहतर होते हैं.
ये रिसर्च जुड़वां बच्चों पर इसलिए की गई क्योंकि बच्चों की पढ़ाई पर जेनेटिक्स के असर को गहराई से मापा जा सके. एक जैसे दिखने वाले जुड़वां बच्चों के 100 फ़ीसद जीन्स एक जैसे होते हैं.
वहीं, जो जुड़वां बच्चे एक जैसे नहीं दिखते, उनके औसत 50 फ़ीसद जीन्स एक जैसे होते हैं. अब एक जैसे दिखने वाले जुड़वां बच्चे अगर पढ़ाई में एक जैसे स्तर को हासिल करते हैं, तो साफ़ है कि उनके जीन्स का पढ़ाई पर असर होता है. और अगर उनकी पढ़ाई के स्तर में फ़र्क़ होता है, तो उसकी वजह भी बच्चों के डीएनए में फ़र्क़ हो सकती है.
अगर बच्चों का स्कूल का ग्रेड प्राइमरी से लेकर सेकेंडरी स्कूल तक एक जैसा ही रहता है, तो इसके पीछे बड़ी वजह बच्चों का जीन सीक्वेंस होता है.
बच्चों के पढ़ाई के स्तर में 70 फ़ीसद योगदान उनके डीएनए सीक्वेंस पर निर्भर करता है, तो 25 फ़ीसद उनके माहौल पर. बाक़ी का पांच फ़ीसद फ़र्क़ अलग-अलग दोस्तों और टीचर के होने से होता है.
अगर जुड़वां बच्चों के ग्रेड में बहुत उतार-चढ़ाव आया, तो इसकी बड़ी वजह ये रही कि उन जुड़वां बच्चों को पढ़ाई और रहन-सहन का अलग-अलग माहौल मिला.
आम तौर पर बच्चों की अच्छी या बुरी ग्रेड के लिए उनकी अक़्लमंदी के स्तर को ज़िम्मेदार ठहराया जाता है. लेकिन, सच ये है कि बच्चे स्कूल में जो ग्रेड लाते हैं, उसकी सबसे बड़ी वजह उनके जीन्स यानी डीएनए सीक्वेंस होते हैं.
हाल के दिनों में पढ़ाई के जीन्स से ताल्लुक़ को लेकर जीनोम-वाइड एसोसिएशन स्टडीज़ ( ) की गई हैं. इन रिसर्च से ये पता चलता है कि छात्रों के कुछ ख़ास गुणों का ताल्लुक़ किस जीन से होता है. दिक़्क़त ये आई कि इस स्टडी से पढ़ाई से जिन जीन्स का ताल्लुक़ पाया गया, उनका असर महज़ 0.1 फ़ीसद था.
तो, एक और रिसर्च के ज़रिए बच्चों के जीनोम के पढ़ाई के स्तर से संबंध को मापा गया. इसे पॉलीजेनिक स्कोर कहते हैं. इसके आधार पर आज ये बताया जा सकता है कि कोई बच्चा स्कूल में कैसा परफॉर्म करेगा.
ख़ास तौर से ऐसे बच्चों के ग्रेड की तुलना हो सकती है, जिनका एक-दूसरे से कोई ताल्लुक़ नहीं है.
इस पॉलीजेनिक स्कोर की मदद से उन छह हज़ार जुड़वां बच्चों की पढ़ाई के पूर्वानुमान लगाए गए. ये पूर्वानुमान जुड़वां लोगों के बारे में तुलनात्मक अध्ययन नहीं थे. बल्कि, इनके ज़रिए ये पता लगा कि दो अलग-अलग बच्चों के स्कूल में ग्रेड में कितना फ़र्क़ हो सकता है.
फिर उनकी सेकेंडरी एजुकेशन का ग्रेड कैसा रहने वाला है. इस पॉलीजेनिक स्कोर से एक बात तो साफ़ हो गई कि एक जैसे जीन वाले बच्चों की पढ़ाई में उपलब्धि कमोबेश एक जैसी ही आती है.
इस रिसर्च का एक बड़ा फ़ायदा ये हो सकता है, कि उन बच्चों की शुरुआत में ही मदद हो जाए, जो पढ़ाई में कमज़ोर रहने वाले हैं. आगे चलकर पॉलीजेनिक स्कोर और बच्चों के इर्द-गिर्द के माहौल की पड़ताल कर के ये अंदाज़ा लगाया जा सकता है कि किस बच्चे को पढ़ाई में मदद की दरकार होगी. फिर उन्हें पढ़ाई में बेहतर करने के लिए ख़ास मदद मुहैया कराई जा सकती है.
हम डीएनए टेस्ट की मदद से बच्चों की पैदाइश के वक़्त ही पता लगा सकते हैं कि कोई बच्चा स्कूल की पढ़ाई में कैसा रहेगा. फिर शुरुआत से ही उस पर ज़्यादा ध्यान दिया जा सकेगा. पढ़ाई में कमज़ोर बच्चों की शुरू से ही मदद कर के उन्हें ज़िंदगी में आगे चल कर कामयाब बनाया जा सकता है.
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