Tuesday, October 22, 2019

बाथरूम में कैसी कैसी अजीब आदतें अपनाते हैं लोग

मिस्र के मशहूर कॉमेडियन बासेम यूसेफ़ जब ब्रिटेन में अपना पहला शो कर रहे थे, तो वो मंच पर एक बिडेट लेकर आए.
यूसेफ़ ने कहा कि 'हम अरब के लोग जब विदेश दौरे के लिए पैकिंग करते हैं, तो तीन चीज़ें रखना नहीं भूलते. एक तो पासपोर्ट, कुछ नकदी और जो तीसरी चीज़ हम हमेशा साथ रखते हैं, वो हाथ से पकड़ी जाने वाली बिडेट है.'
यूसेफ़ ने हवा में एक शौचालय में लगने वाला पाइप यानी बिडेट लहराया, जिससे शौच के बाद धोने के लिए पानी स्प्रे करते हैं. अरबी भाषा में इसे शत्तफ़ और अंग्रेज़ी में 'बम गन' कहते हैं.
यूसेफ़ ने पश्चिमी देशों का मज़ाक़ उड़ाते हुए कहा कि यूं तो पश्चिमी देशों ने बहुत तरक़्क़ी कर ली है. लेकिन, जब बात शरीर के पीछे के हिस्से की आती है, तो पश्चिमी देश, बाक़ी दुनिया से बहुत पिछड़े हुए हैं.
दुनिया के तमाम लोग और बहुत से हिंदुस्तानी इस बात से इत्तेफ़ाक़ रखते हैं.
हम हिंदुस्तानी हाजत रफ़ा करने, या शौच करने या फिर पॉटी करने के बाद धोते हैं. मगर अमरीकी और ब्रितानी लोग, इसके बाद टिश्यू पेपर इस्तेमाल करते हैं और धोने के बजाय पोछ कर काम चला लेते हैं.
दुनिया के बहुत से लोगों को पश्चिमी देशों के लोगों की ये आदत अजीब लगती है. आख़िर पानी से बेहतर सफ़ाई होती है. और ये काग़ज़ के मुक़ाबले नरम भी ज़्यादा होता है.
एक दौर ऐसा भी था, जब प्राचीन यूनानी सेरैमिक के टुकड़ों से शौच
ऑस्ट्रेलिया के रिसर्चर ज़ुल ओथमैन कहते हैं कि उनके देश में रहने वाले मुसलमानों ने टॉयलेट पेपर के साथ-साथ पानी का भी इस्तेमाल करना सीख लिया है. इसके लिए वो बाथरूम में या तो बिडेट लगवा लेते हैं. या फिर जग में पानी लेकर हाजत के लिए जाते हैं.
नवी मुंबई की रहने वाली आस्था गर्ग भी पश्चिमी देशों की टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने की आदत की शिकार हुईं.
जब आस्था सैन फ्रांसिसको में काम करने गईं, तो उन्होंने शौचालय में मग की तलाश शुरू की. वो वहां मौजूद ही नहीं था. शौचालय में पानी का इंतजाम ही नहीं था. बाद में उन्हें एक भारतीय रेस्टोरेंट में जाना पड़ा.
आस्था कहती हैं कि कुछ भारतीयों ने शौच के बाद टिश्यू पेपर का प्रयोग करने की आदत डाल दी है. लेकिन ज़्यादातर भारतीय अब भी पानी को ही तरज़ीह देते हैं. किसी भी भारतीय मूल के लोगों के घरों के शौचालय में पानी का इंतज़ाम होता है.
वहीं, ओथमैन कहते हैं कि ब्रितानियों तो पॉटी के बाद टॉयलेट पेपर इस्तेमाल करने की ज़बरदस्त ज़िद होती है.
उनके एक दोस्त ने टॉयलेट पेपर न मिलने पर तो 20 पाउंड के नोट का इस्तेमाल कर लिया. यही वजह है कि अमरीका में आज सबसे ज़्यादा टॉयलेट पेपर इस्तेमाल होता है.
आस्था गर्ग कहती हैं कि टॉयलेट पेपर के इस्तेमाल से एक समस्या और भी पैदा होती है. लोगों के टॉयलेट चोक हो जाते हैं.
टॉयलेट पेपर का इस्तेमाल चीन में भी आम है. आख़िर चीन में ही काग़ज़ का आविष्कार हुआ था. लेकिन इसका प्रयोग अमरीकी टॉयलेट पेपर निर्माताओं और विज्ञापन देने वालों ने ज़्यादा किया.
शौच के बाद सफ़ाई के तरीक़े पर ही नहीं, कैसे हाजत रफ़ा करें, इस पर भी विवाद है. पश्चिमी देशों में कमोड का चलन ज़्यादा है, जिस पर आप आराम से बैठ कर किताब या अख़बार पढ़ते हुए फ़ारिग हो सकते हैं.
वहीं भारत समेत बहुत से देशों में उकड़ू बैठकर हल्के होने का चलन है.
चीन से आकर अमरीका में बसे कैसर कुओ के सामने भी यही दुविधा थी. वो बताते हैं कि चीन में हान साम्राज्य के दौरान दोनों ही तरह के शौचालयों का प्रयोग चलन में था.
आज भी दोनों ही विकल्प चीन के अलग-अलग क्षेत्रों में आज़माए जाते हैं. लेकिन, चीन की ज़्यादातर आबादी पुराने शौचालयों यानी उकड़ू बैठने वालों को ही तरज़ीह देती है.
एक अनुमान के मुताबिक़, दुनिया की दो तिहाई आबादी उकड़ू बैठकर ही फ़ारिग होती है. ये साफ़-सफ़ाई पसंद लोगों के लिए भी मुफ़ीद है. उकड़ू बैठने से शौचालय से आप का ताल्लुक़ नहीं होता, जिससे कीटाणुओं का इन्फ़ेक्शन होने की आशंका कम होती है. ब्रिटेन की बहुत सी महिलाएं सार्वजनिक शौचालयों को उकड़ू बैठकर ही इस्तेमाल करती हैं.
उकड़ूं बैठने से आप के फ़ारिग होने की प्रक्रिया भी आसान हो जाती है. यही वजह है कि चीन के बहुत से बुज़ुर्ग घुटनों के बल बैठने के मामले में युवाओं को मात देते हैं.
उधर, अमरीकियों का भी जवाब नहीं, उन्होंने शौच पर जाने को भी मनोरंजन का माध्यम बना लिया है. कोई अख़बार लेकर जाता है, तो कोई किताब पढ़ने बैठ जाता है. शौचालय में मोबाइल लेकर वीडियो गेम भी कई लोग खेलते रहते हैं. हालांकि हमारे हिंदुस्तान में शौच के वक़्त पढ़ना लिखना बुरा माना जाता है. चीन में भी यही तरबीयत दी जाती है.
मगर, अंग्रेज़ियत या इस पश्चिमी ख़ब्त के मुरीद कुछ ब्राउन साहिब लोग अख़बार पढ़ते हैं हाजत के वक़्त, समय बचाने के लिए.
मलेशिया में सार्वजनिक जगहों पर दोनों ही शौचालयों की सुविधा मिलती है. जिसे जैसा पसंद हो, वो इस्तेमाल कर ले.
के बाद सफ़ाई करते थे. वहीं, अमरीका पहुंचे शुरुआती प्रवासी शौच के बाद साफ़ करने के लिए, मक्के के ख़ाली भुट्टे का प्रयोग करते थे. बहुत से देशों के लोग शौच के बाद पानी का इस्तेमाल करते हैं.
यूरोपीय देश फ्रांस ने तो दुनिया को बिडेट का आविष्कार करके दिया. हालांकि ये यंत्र अब फ्रांस से विलुप्त हो रहा है. लेकिन, आज भी इटली, अर्जेंटीना और दूसरे देशों में इसका ख़ूब इस्तेमाल होता है. बसेम यूसेफ़ की बम गन फिनलैंड में आम है.
लेकिन, पश्चिमी देशों में ज़्यादातर लोग टिश्यू पेपर का ही इस्तेमाल करते हैं. ख़ास तौर से अमरीका और ब्रिटेन के लोग. और उनकी ये आदत कई देशों में प्रचलित हो गई है. मशहूर इतिहासकार बारबरा पेनर ने अपनी किताब बाथरूम में इसे सैनिटरी साम्राज्यवाद कहा है.
लेकिन, ज़्यादातर मुस्लिम देशों में हाजत के बाद पानी का ही प्रयोग होता है. क्योंकि इस्लाम की शिक्षा में साफ़-सफ़ाई के लिए पानी के प्रयोग की सलाह दी गई है.
हालांकि 2015 में तुर्की के धार्मिक मामलों के निदेशालय ने फ़तवा जारी किया था कि अगर पानी न हो तो मुस्लिम लोग हाजत के बाद टॉयलेट पेपर प्रयोग कर सकते हैं. वहीं, जापान में दोनों ही विकल्प शौचालयों में पाए जाते हैं.

Thursday, September 19, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

मध्य पूर्व चरमपंथ के ख़िलाफ़ छिड़ी लड़ाई के केंद्र में है. अपनी तकनीकी मज़बूती के लिए मध्य पूर्व के ये देश अमरीका, ब्रिटेन और रूस जैसे तकनीकी रूप से उन्नत देशों की ओर ताक़ते हैं.
इसलिए मध्य-पूर्व में तकनीकी सप्लाई करने को लेकर बहुत प्रतिद्वंद्विता है.
लेकिन जहां इसके ख़रीदार एक तरफ़ इसराइल और खाड़ी के अरब देश हैं तो वहीं दूसरी तरफ़ ईरान, इसके सहयोगी और हिज्बुल्लाह और हूती जैसे समर्थक भी हैं.
अमरीका ने मध्य पूर्व में अल-क़ायदा और तथाकथित इस्लामिक स्टेट (आईएस) के ख़िलाफ़ अपने अभियान में सशस्त्र ड्रोन का भरपूर इस्तेमाल किया है.
प्रीडेटर और रीपर जैसे ड्रोन का उसने सीरिया, इराक़, लीबिया और यमन में इस्तेमाल किया है.
प्रीडेटर से बड़ा, भारी और कहीं अधिक क्षमता वाला एमक्यू-9 रीपर है जो कहीं बड़े हथियार को लंबी दूरी तक ले कर जा सकता है.
अमरीका के सैन्य सहयोगी ब्रिटेन ने यूएसए से कई रीपर ख़रीदे और इसका इस्तेमाल इराक़ी और सीरियाई लक्ष्यों को ध्वस्त करने में किया.
ड्रोन तकनीक को बेचने के मामले में इसराइल कहीं आगे है. 2018 के एक शोध के मुताबिक़ बिना हथियार वाले ड्रोन को बेचने के मामले में क़रीब 60 फ़ीसदी वैश्विक बाज़ार पर इसराइल का क़ब्ज़ा है.
अन्य देशों के अलावा इसने निगरानी करने वाले ड्रोन रूस को भी बेचे हैं और इनमें से कम से कम एक को उसने तब मार गिराया था जब सीरिया की सीमा से वो इसराइल में घुसने की कोशिश कर रहा था.
ख़ुफ़िया जानकारी जुटाने, निगरानी करने और हमले के अभियानों को अंजाम देने के लिए इसराइल अलग अलग तरह के ड्रोन का इस्तेमाल करता है.
इसके सशस्त्र ड्रोन में हेरॉन टीपी, हर्मिस 450 और हर्मिस 900 शामिल हैं. हालांकि अब तक इसरायल इन सशस्त्र ड्रोनों के निर्यात को लेकर अनिच्छुक ही रहा है.
हथियार बनाने पर रोक और प्रतिबंधों के बावजूद ईरान ने कहीं बेहतर सशस्त्र ड्रोन विकसित करने की अपनी क्षमता विकसित की है.
2012 में इसने शाहेद-129 के बारे में जानकारी दी जिसका सीरिया और इराक़ में लक्ष्यों को भेदने में इस्तेमाल भी किया गया.
जबकि 2018 से वह मोहाज़ेर 6 नामक ड्रोन बना रहा है.
हालांकि ईरान के ड्रोन कार्यक्रम का दूसरा पहलू भी है कि वो इसे इस इलाक़े के अपने सहयोगियों को बेचना या हस्तांतरित करने की इच्छा भी रखता है.
यूनाइटेड अरब अमीरात (यूएई) ने चीन में बने विंग लूंग 1 ड्रोन को तैनात किया है, जिसे उसने यमन और लीबिया के गृह युद्ध में लक्ष्यों को नष्ट करने में इस्तेमाल किया.
यूएई जनरल हफ्तार के नेतृत्व वाले गुट का समर्थन करता है.
लीबिया में राष्ट्रीय सहमति वाली सरकार के समर्थन में तुर्की में बने ड्रोन इस्तेमाल किए गए.
अमरीकी ड्रोन को ख़रीदने में असमर्थ तुर्की ने अपने ख़ुद के ड्रोन बनाए और उनका इस्तेमाल उसने तुर्की और सीरिया के कुर्दिश टारगेट को भेदने में किया.
वहीं इराक़, जॉर्डन, सऊदी अरब, मिस्र और अल्जीरिया जैसे देशों ने चीन में बने ड्रोन ख़रीदे हैं.
व्यवस्था विरोधी ताक़तों में हूती विद्रोही मानवरहित ड्रोन का सबसे कारगर इस्तेमाल करते हैं.
संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के मुताबिक़, वो कई ऐसी सिस्टम का इस्तेमाल करते हैं जो ईरानी प्रौद्योगिकी पर बहुत अधिक निर्भर हैं.
हूती विद्रोहियों ने क्यूसेफ़-1 का इस्तेमाल किया जो संयुक्त राष्ट्र के विशेषज्ञों के मुताबिक़, बहुत हद तक ईरानी मॉडल के समान है.
ये वो 'कामिकेज़ ड्रोन' हैं जिन्हें उनके टारगेट से जानबूझ कर टकराया गया. संयुक्त राष्ट्र की एक रिपोर्ट के मुताबिक़, हूती एक और उन्नत ड्रोन का इस्तेमाल भी करते हैं, कभी कभी इन्हें समद-2/3 बताया जाता है, माना जाता है कि ये एक छोटा विस्फोटक वारहेड है.
ऐसा माना जाता है कि लेबनान के शिया मुसलमान चरमपंथी संगठन हिज़्बुल्लाह ने कम संख्या में ड्रोन के उपयोग किए हैं लेकिन माना जाता है कि ये उन्हें ईरान से मिले थे.
सीरिया की लड़ाई में पहली बार ड्रोन का व्यापक इस्तेमाल देखा गया जिसका उपयोग हवाई सुरक्षा को तबाह करने के लिए किया गया.
तब विद्रोहियों ने सीरिया में स्थित रूसी सैन्य ठिकानों पर कई ड्रोन हमले किए थे.
स्पष्ट है कि सशस्त्र ड्रोन तकनीक का अब व्यापक इस्तेमाल हो रहा है.
विरोधाभास ये है कि नई तकनीक वाले उन्नत ड्रोन को अपने सहयोगियों को बेचने की अमरीका की अनिच्छा ने ड्रोन के प्रसार की संभावनाओं को ख़त्म नहीं किया क्योंकि चीन ने बहुत हद तक इसके समकक्ष टेक्नॉलॉजी के साथ बाज़ार में क़दम रखा है.
लक्ष्य भेदने के लिए मानवरहित ड्रोन के इस्तेमाल ने एक नई तरह की लड़ाई छेड़ते हुए युद्ध और शांति के बीच की रेखा को बहुत हद तक मिटा दिया है.
मानवरहित ड्रोन ने अपने लक्ष्य पर सटीक प्रहार करने में क्षमता हासिल की है, साथ ही इसके हमलों में (अगर ख़ुफ़िया जानकारी पक्की है तो) टारगेट के आस पास नुक़सान न के बराबर होता है.
आतंक के ख़िलाफ़ तथाकथित युद्ध में सशस्त्र ड्रोन या यूएवी एक ज़रूरत के मुताबिक़ विकसित किया गया एक कारगर हथियार बन गया है.
लेकिन तकनीकी रूप से कम उन्नत देशों के ड्रोन बनाने की वजह से काफ़ी हद तक एक असमान जद्दोजहद भी शुरू हो गई है.

Monday, July 1, 2019

تغليب الصورة الواقعية على تلك المُحسنّة

فهل سيشكل إسدال الستار على مسلسل "هوملاند" نهاية لحقبة من الأعمال التليفزيونية، التي تُذكي الخوف المرضي من الإسلام؟ بالقطع يمكن القول إن شبكات التليفزيون الأمريكية والقائمين على الأعمال الدرامية، شرعوا في إبداء الاهتمام بمخاوف المسلمين في هذا الصدد. ففي السنوات القليلة الماضية، قدمت موجة من الأعمال الأمريكية ذات الطابع المثير والمشوق، أبطالا مسلمين ضمن أحداثها. وشكّل ذلك - ربما - محاولة واعية لتخفيف الصور السلبية التي سبق تقديمها عن المسلمين من قبل.
ومن بين هذه الأعمال، مسلسل "إن سي آي إس"، الذي أثار الكثير من الجدل بسبب تصويره لشخصيات مسلمة، بينهم من يحملون الجنسية الأمريكية، إذ وجه نقاد اتهامات للقائمين عليه بتعزيز فكرة أن كل مسلم هو إرهابي محتمل. رغم ذلك، فقد أُدخلت تعديلات جديرة بالثناء على مسار أحداث العمل، حتى قبل أن يبلغ موسمه الحالي العاشر، الذي يحمل اسم "إن سي آي إس: لوس أنجليس".
ففي إحدى حلقات الموسم التاسع، ظهرت شخصية مسلمة تُدعى سام، تجسد دور عميل خاص رفيع المستوى في خدمة التحقيقات البحرية الجنائية، ليصبح بذلك واحدا من أوائل الشخصيات المسلمة، التي تُمنح دور بطولة في مسلسل تليفزيوني أمريكي كبير. وحرص القائمون على المسلسل على إبراز أن ديانة هذا الرجل لا تعدو سوى إحدى جوانب شخصيته، كأمريكي محب لوطنه بكل معنى الكلمة.
وفي هذا العام، ظهرت في الأحداث شخصية عميلة خاصة ترتدي الحجاب. وعَمِل المسؤولون عن المسلسل على ألا يجعلوا ديانتها النقطة المحورية المتعلقة بدورها. بل إنها صُوّرت على أنها فتاة أمريكية عادية تهوى اقتناء السلع والمنتجات غالية الثمن. كما أنه لم تتم الإشارة إلى غطاء رأسها، سوى من قبل متطرف مسلم، سخر من أنها ليست سوى "فتاة أمريكية فاسدة، رغم ارتدائها الحجاب".
في السياق ذاته، تتضمن أحداث مسلسل الجريمة الأمريكي "بليند سبوت" الذي بدأت للتو حلقات موسمه الخامس والأخير، شخصية ترتدي الحجاب وتعمل لصالح مكتب التحقيقات الفيدرالي "إف بي آي". وفي هذه الحالة أيضا، لا يتم التركيز بشكل غير ضروري على غطاء الرأس الذي ترتديه، وإنما يتمثل الملمح الرئيسي لشخصيتها في الدعابات السمجة التي تتفوه بها. ويشكل ذلك خطوة واضحة إلى الأمام، لأن التركيز الدائم على الخصائص المُمَيزة للمسلمين وحدهم، مثل أغطية الرأس أو أبسطة الصلاة وغيرها لا يفيد بشيء حتى وإن كان يتم بنية حسنة.
لكن الجهود المبذولة لجعل وجود النساء المسلمات المحجبات أمرا طبيعيا في الأعمال الدرامية الأمريكية، تتعارض بشكل صارخ مع الطريقة التي قدم بها "هوملاند" واحدة من هؤلاء السيدات، مُجسدة دور عميلة مسلمة لـ "سي آي آيه". ففي إطار أحداث العمل، وُبِخَتْ هذه الشخصية بشدة من جانب رئيسها - الذي يُنظر إليه في المسلسل باعتباره البوصلة الأخلاقية لأبطاله - وذلك بدعوى أنها لا تحترم زملاءها نظرا لكونها ترتدي غطاء الرأس، الذي يعتبره المسؤول عنها "تذكيرا رمزيا بأعداء هؤلاء الزملاء". ومع تطور الأحداث، نجد أن هذه السيدة - التي يوضح لها المحيطون كيف يمكن أن تصبح عميلا ملتزما بواجبه - تتوقف عن ارتداء غطاء الرأس، دون كثير تفسير أو توضيح.
ومن بين المسلسلات الأخرى التي قطعت أشواطا على طريق تصحيح الأحكام المسبقة التي شُكِلَت من قبل عن المسلمين، النسخة الجديدة التي قدمتها شركة أمازون لمسلسل "جاك ريان" للمؤلف توم كلينسي، والتي بدأ بث حلقاتها العام الماضي، وأسندت فيها شخصية رئيس وكالة الاستخبارات المركزية الأمريكية إلى الممثل ويندل بيرس. وصوّرِت هذه الشخصية ضمن الأحداث على أنها لأمريكي من أصل أفريقي اعتنق الإسلام، ويحمل اسم جيمس غرير.
على أي حال، يبدو إظهار الدراما الأمريكية لمثل هذه الشخصيات المسلمة، التي تُقدم على أنها صالحة بالفطرة وذات نزعات وطنية، وتصويرها في هيئة الأبطال أو وضعها في مواقع القيادة، خطوة ثقافية مهمة، بل وإقرارا واعيا من جانب هوليوود بحقيقة مفادها، أنه بوسع المسلمين الأمريكيين أن يضعوا أرواحهم على أكفهم يوميا لحماية مواطنيهم، لا أن يكتفوا باعتناق القيم الأمريكية وتبنيها فحسب.
بجانب ذلك، تطورت النصوص الدرامية لهذه الأعمال التليفزيونية، إلى مرحلة بلغت فيها حد الحديث عن أن المسلمين الذين يمارسون شعائر دينهم بسلام، هم القاعدة لا الاستثناء. ولكن ذلك لا ينفي أن مسلسلا مثل "هوملاند"، لم يكف عن محاولة استغلال الصور النمطية السائدة عن المسلمين، حتى عندما ادعى أنه يقدم شخصية مسلمة "إيجابية"، مثل تلك التي أُعطيت اسم داني غالفيز، وأُظهرت على أنها لعميل في "سي آي آيه"، صار محلا للشبهات، بمجرد أن عُرِفَ أنه مسلم. وعندما يثبت هذا الرجل بعد ذلك ولاءه لوطنه ولرفاقه، يُظهر السيناريو ذلك، وكأنه تحول غير متوقع في سير الأحداث.
أما "إف بي آي"، الذي كان العمل الدرامي الأكثر مشاهدة بين المسلسلات الجديدة التي عُرضت الموسم الماضي على شاشة شبكة "سي بي إس" التليفزيونية، فقد كان أول مسلسل حركة كبير يُعرض على الشاشة الأمريكية، ويُسند أحد أدوار البطولة فيه إلى ممثل عربي ومسلم، وهو زيكو زكي. ويجسد زكي - ذو الأصل المصري - دور عميل خاص، من أصول عربية ويدين بالإسلام كذلك، ما يماثل شخصيته في الواقع.
المعروف أن هذا الممثل الشاب سبق أن كشف عن أن الأدوار، التي كانت تُعرض عليه في الفترة التي سبقت تجسيده لهذه الشخصية، كانت تنحصر دائما في تجسيد شخصيات نمطية لإرهابيين أو أشرار. وأكد ضرورة إحداث "تغيير ثقافي" في هذا الشأن.
ومع أن الخطوات التي قُطعت على طريق زيادة حجم تمثيل المسلمين على الشاشة الصغيرة تمثل أمرا مُرحبا به للغاية، فإن مثل هذا التمثيل لا يزال قاصرا بشكل كامل تقريبا، على المسلسلات ذات الطابع المثير المشوق، أو الأعمال التي تتخذ من القضايا الجيوسياسية موضوعا لها. فحتى الآن لا يزال من العسير تناول القصص التي تتعلق بالحياة اليومية للمسلمين العاديين.
وربما آن الأوان الآن للتعرف على رأي كل من شاف تشودري وساديا حبيب، اللذين ابتكرا اختبارا لتحديد مساحة حضور الشخصيات المسلمة على الشاشة الأمريكية. إذ يرى الاثنان أن تعزيز هذا الحضور، سواء على الشاشات أو في المجتمع، سيحدث "عندما يُكلف الكتاب المسلمون باستلهام وقائع حياتهم العادية في أعمالهم".
ويعكف شاف وساديا على تحليل الشخصيات المسلمة التي تظهر في الأعمال السينمائية، وتحديد ما إذا كانت تُقدم على أنها ضحية للإرهاب أم مُرتكبة له؟ وهل تُقدم في صورة شخصية غاضبة على نحو لا عقلاني؟ أو تُظهر على أنها مؤمنة بالخرافات؟ أو ذات رؤى رجعية من الوجهة الثقافية؟ أو معادية للحداثة؟ أو تشكل تهديدا لنمط الحياة الغربي؟ من عدمه.
وإذا كانت الشخصية لذكر، يحلل الاثنان ما إذا كانت تُصوّر على أنها معادية للمرأة أم لا. أما إذا كانت لامرأة، فينصب التحليل على ما إذا كان العمل يقدمها على أنها مضطهدة من عدمه. ومن شأن إظهار صناع الفيلم للشخصية وهي تحمل أي سمة من السمات التي سبق ذكرها هنا، الحكم بأن هذا العمل فشل في الاختبار.

Tuesday, June 18, 2019

چین کو ملزمان کی حوالگی کا متنازع قانون، ہانگ کانگ میں 20 لاکھ افراد کا تاریخی احتجاج

ہانگ کانگ میں لاکھوں افراد نے چین کو ملزمان کی حوالگی کے متنازع قانون کے خلاف احتجاج کیا ہے۔ منتظمین کا دعویٰ ہے کہ تقریبا 20 لاکھ افراد نے اس احتجاج میں حصہ لیا۔
اگر شرکا کی تعداد کی تصدیق ہو جاتی ہے تو یہ ہانگ کانگ کی تاریخ کا سب سے بڑا احتجاج ہو سکتا ہے۔ پولیس کے مطابق مظاہرین کی تعداد ساڑھے تین لاکھ کے لگ بھگ تھی۔
مجوزہ قانون کے مطابق چین ہانگ کانگ سے سنگین جرائم میں ملوث مطلوب ملزمان کو اس کے حوالے کرنے کی درخواست کر سکتا ہے اور ان کے خلاف چین میں ہی مقدمات چلائے جا سکیں گے۔ ناقدین کے بقول یہ قانون سیاسی مخالفین کو نشانہ بنانے میں چین کی مدد کر سکتا ہے۔
ہانگ کانگ کی چیف ایگزیکٹو کیری لام کی جانب سے بل کی معطلی کے باوجود لوگوں کی بڑی تعداد نے احتجاج میں حصہ لیا۔
کیری لام نے اتوار کے روز بل پیش کرنے پر معذرت کر لی تھی۔ بہت سے مظاہرین جنھیں ہانگ کانگ پر چین کے اثر ورسوخ بڑھنے کا خدشہ ہے، وہ کیری لام سے استعفی بھی مانگ رہے ہیں۔ ان کا مطالبہ ہے کہ اس قانون کو صرف معطل ہی نہیں بلکہ ختم بھی کیا جائے۔

یہ بھی پڑھیے

حوالگی قانون کے خلاف ہانگ کانگ میں مظاہرے
تیانانمن سکوائر: ہانگ کانگ میں شمعوں کا سیلاب
تیانانمن سکوائر پر مظاہرین کے خلاف کارروائی درست تھی‘
بدھ کے روز ہونے والے مظاہرے کے مقابلے میں یہ احتجاج بنیادی طور پر پرامن تھا۔
واضح رہے کہ بدھ کے روز مظاہرین اور پولیس کے درمیان جھڑپوں میں درجنوں افراد زخمی ہو گئے تھے۔
احتجاج دوپہر کو وکٹوریا سکوائر میں شروع ہوا جس میں زیادہ تو لوگوں نے سیاہ لباس زیب تن کر رکھے تھے۔
مارچ کی رفتار سست رہی کیونکہ بڑی تعداد میں لوگوں نے گلیوں اور ٹرین سٹیشنوں کو بند کر رکھا تھا۔
احتجاج میں شریک 67 سالہ ایک شخض نے بی بی سی سے بات کرتے ہوئے کہا ’ کیری لام نے ہانگ کانگ کے لوگوں کے جذبات کو نظر انداز کیا ہے۔‘ انھوں نے کہا ’ گذشتہ ہفتے ہوئے لاکھوں افراد کے مارچ کے بعد انھوں نے ایسے ظاہر کیا جیسے یہ کوئی بڑی بات نہیں۔‘
’دوسری بات یہ کہ ہم ان طالب علموں کے لیے مارچ کر رہے ہیں جن سے پولیس بہت ظالمانہ انداز میں پیش آئی۔ ہمیں ان کے لیے انصاف چاہیے۔‘
تنازعہ کیا ہے؟
برطانیہ کی سابق نو آبادی، ہانگ کانگ سنہ 1997 میں چین کو واپس کیے جانے کے بعد 'ایک ملک، دو نظام' کے اصول کے تحت ایک نیم خود مختار ریاست بن گئی تھی۔
ہانگ کانگ کے اپنے قوانین ہیں اور اس کے رہائشیوں کو وہ شہری آزادی حاصل ہے جو عام چینی باشندوں کو حاصل نہیں ہے۔
ملزمان کی حوالگی کی تجویز اس وقت سامنے آئی جب گذشتہ برس فروری میں ہانگ کانگ سے تعلق رکھنے والے ایک شخص نے تائیوان میں مبینہ طور پر اپنی حاملہ گرل فرینڈ کو قتل کر دیا تھا۔ گزشتہ سال وہ شخص تائیوان سے فرار ہو کر ہانگ کانگ آ گیا تھا۔
ناقدین کے مطابق ملزمان کی حوالگی کے قانون اور ہانگ کانگ کے شہریوں کو چین کے حوالے کرنے سے ان کے بنیادی حقوق متاثر ہوں گے۔
بہت سے لوگوں کا خدشہ ہے کہ اس قانون سے برطانیہ کی سابق نو آبادی کو چین کے انتہائی ناقص انصاف کے نظام کا سامنا
کرنا پڑے گا اور اس کی وجہ سے ہانگ کانگ کی عدلیہ کی آزادی مزید متاثر ہو گی۔

Tuesday, June 11, 2019

#MeToo之后:改善中国环保界性别平等现状

#MeToo运动近期相继在中国的学术界、公益界和媒体界爆发,用残酷的事实展示了工作场合性骚扰、性侵犯的普遍性。人们批判施暴者漠视道德准则和他人尊严,呼吁尽早建立预防和惩罚性骚扰的有效机制。

被曝光的性侵行为往往发生于掌握权力的男性和处于弱势的女性之间(如男记者与女实习生、男性机构负责人与女志愿者),凸显出职场乃至整个社会中存在着基于权力不平等的侵害行为,环保公益领域也不例外。因此,反对性骚扰只是一个开始。女性的诉求不应止步于获得保护,她们需要更主动地、更全面地参与到追求性别平等、重塑权力结构的进程中。

环境领域的性别不平等

性骚扰事件可谓是性别不平等的极端体现,其实职场中还存在许多看似更“温和”的问题。环境领域的工作者对这些现象一定不觉得陌生:大大小小的会议上,在台上侃侃而谈的多是男士,虽然研究相同议题的女性并不罕见(国际上,这被形象的称为manel,既all-male panel);环境新闻报道中更多引用的是男性专家的观点和意见;在很多环保机构中,尽管总体上女性员工更多,但管理层还是以男性为主

这一类的问题不以暴力的形式出现,但却会系统性的限制女性职业发展、固化男性主导的权力结构。很多人觉得上述现象司空见惯,其实也是默许了性别不平等的事实。

环保组织的工作往往希望对外界产生影响。因而,内在的性别权力失衡会随着工作的开展产生外部影响。比如,政策制定本应吸收多方意见,如果参与讨论的总是固定的一群人且男性居多,最终推出的政策很可能无法有效反映女性的利益诉求,从而又进一步强化了男性主导的局面。而事实上,女性往往更易受环境污染和气候变化影响,她们的诉求本该成为政策和项目设计的重点。虽然女性也完全可以是男权、父权的维护者,但增加女性发声机会和女性领导者的数量仍不失为弥补两性权力差距的良方。

现在就可以开始改变

丑闻曝光之后,众多国内公益机构就公开做出了反性骚扰承诺,这样的快速回应也给人以希望。毕竟,比起受体制严格束缚的政届、商界和学术界,NGO行业更具备发生变革的基础和潜力。

提高女性话语权和影响力是一个复杂、缓慢的过程,但已经有人开始采取一些切实可行的行动。比如,让女性专家的观点和声音更多的出现在媒体报道中。例如, 团队就搜集整理了一份研究中国问题的女性专家名单,包含专家们的专业领域和联系方式。这份名单免费供其他记者使用,以鼓励同行将更多女性声音纳入报道。不过,这份名单上中国籍的女性专家仍是少数,可以做进一步的扩充。针对中文媒体工作者,类似的名单和倡议也值得推广

再比如,在各类会议上为女性参与者提供更多的发言机会,杜绝“全男性论坛”(manel)现象。在环境领域工作的女性众多,只要能将性别平等作为组织会议的一项基本原则,这一点应该不难实现。在具体操作上,欧洲同仁的做法可资借鉴:旨在提高欧盟政策讨论中性别多样性的倡议The Brussels Binder已经编写了一份指南,不管你是会议组织方还是参会嘉宾,你都可以在指南里了解到如何以自身的行动提高会议中的性别平等

更大胆一些…

爱尔兰前总统Mary Robinson和爱尔兰喜剧演员Maeve Higgins于近期启动的一个新项目提出了比单纯的“平权”更具雄心的想法。这个名为“创造之母”(Mothers of Invention)的倡议计划通过播客的形式,讲述全球各地女性应对气候变化的行动。她们认为气候变化问题有其更深刻的根源:“父权资本主义制度将不会解决气候变化问题,而我们需要去。”

性别平等并不是要在现有体制下与男性“争权”,而是要彻底改变父权制的格局,建立一套女性主义的治理和行为模式。具体到环境议题上,就像Mary Robinson所说:“由人类活动引发的气候变化需要女性主义的解决方案”。这个思路也适用于中国所面对的众多环境挑战

Friday, May 31, 2019

أشهر الأغاني المصرية التي تحتفي بشهر رمضان

ازدانت المآذن بمصابيح الإضاءة، وتزينت الشوارع بأوراق الزينة الملونة، وتهيأت الأجواء استعدادا لاستقبال الزائر السنوي "الكريم"، شهر رمضان.
وفي مصر، زخرت المحال التجارية بالفوانيس أشكالا وألوانا؛ منها الكبير والصغير والصامت والناطق بكلمات أغاني رمضان الأولى.
وإذا كان الفن هو "استشفاف الظاهر وتخليد العابر"، كما يقول الكاتب والأديب يحيى حقي، فقد استشفّ الشعراء صورَ رمضان، وأجواءه وسطروها في أغنيات وإنْ كانت موسمية إلا إنها "خالدة" يتجدد أثرها في النفس لدى سماعها.
فقط الكلمات لم ينَل منها الزمن، أمّا الصوت في أغاني تلك الفوانيس فقد بات محاكاةً "إلكترونية". وكالفوانيس، تجد هذه الأغنيات الموسمية رواجا في رمضان في وسائل الإعلام المختلفة المسموع منها والمرئي.
ولا تزال أغاني رمضان الأولى وحدها بلا منافس حقيقي قادر على الصمود في ساحتها، رغم قِدمها وبعضها مستمد من الفلكور، بل إن هناك مَن يُرجع بعضا من تلك الكلمات إلى العصر الفرعوني، ومن ذلك كلمتَي "وحوي ... إيّاحه" اللتين تعنيان "مرحَى بالقمر"، في إشارة إلى هلال رمضان.
أغنية "وحوي يا وحوي .. إياحة"، هي إحدى أكثر الأغنيات ارتباطا بشهر رمضان، وهي مستوحاة من الفلكلور، وقد تغنّتْ بها حتى الفوانيس صينية الصُنع. وهي من تأليف حسين حلمي المانسترلي وغناء أحمد عبد القادر.
وتنافسها في قوة الحضور والدلالة على الشهر الكريم أغنية "رمضان جانا .. وفرحنا به .. بعد غيابه .. وبقاله زمان ..". وهي كلمات حسين طنطاوي ولحن محمود الشريف، وغناء محمد عبد المطلب، الذي قيل إنه حصل على ستة جنيهات مقابل غنائها، ولما صادفت هذا الحظ من النجاح قال: "لو أننى أخذت جنيها واحدا مقابل كل مرة تُذاع فيها الأغنية لأصبحت مليونيرا".
ومن أغاني استقبال الشهر أيضا، أغنية "مرحبْ شهر الصوم مرحبْ .. لياليك عادت بأمان.. بعد انتظارنا وشوقنا إليك، جيت يا رمضان". وهي من تأليف محمد علي أحمد، وألحان وغناء عبد العزيز محمود.
وغنّى الموسيقار فريد الأطرش من كلمات بيرم التونسي أغنية "هلّتْ ليالي حلوه وهنيّة ..." في إشارة إلى ليالي رمضان.
وللأطفال نصيب كبير من تلك الأغاني، شأنها في ذلك شأن كل المناسبات. وقدّمت فرقة الثلاثي المرِح أغنيات مثل "أهو جِه يا ولاد..."، و"افرحوا يابنات يالّا وهيصوا"، وهما من كلمات نبيلة قنديل وألحان علي إسماعيل.
ولم ينسَ محمد فوزي الأطفال في رمضان، وهو الذي أثرى عالمهم بأجمل الأغنيات، فغنّى لهم من كلمات عبد العزيز سلام، أغنية "هاتو الفوانيس يا ولاد ...".
كما ضمّ فيلم "قلبي على ولدي" من إنتاج عام 1953 صورةً غنائية للطفلة (آنذاك) هيام يونس من كلمات فتحي قورة وألحان أحمد صبرة، تناولتْ حماس الأطفال للصيام في رمضان وازدهاءهم بذلك. وتقول فيها: "اصحى يا نايم وانتي يا نايمة .. اشمعنى انا م المغرب قايمة؟"
ليست شخصية الفانوس وحدها حِكرًا على رمضان، وإنما تُزاحمها شخصية المسحراتي، ذلك الضاربُ ليلاً في الشوارع يوقظ النائمين بالنقر على طبلته لكي يتناولوا وجبة السحور.
واشتهر بتجسيد شخصية المسحراتي الفنان سيد مكاوي، وإنْ لم يكن الوحيد في هذا المضمار؛ إذْ سبقه إلى ذلك الفنان محمد فوزي مغنيا كلمات بيرم التونسي، ولحقه عمار الشريعي حين تغنى بكلمات جمال بخيت، وربما سار على دربهم آخرون.
يقول الشاعر فؤاد حداد على لسان وألحان سيد مكاوي "اصحى يا نايم وحِّدْ الدايم.. اصحى يا نايم وحِّد الرزاق.. رمضان كريم".
وفي إطار فكاهي لتصوير بعض الأشخاص الذين يضيق صبرهم مع الصيام، عبّر الشاعر حسين السيد عن هؤلاء في دويتو غنائي بعنوان "الراجل دا هايجنني" للمطربة صباح والفنان فؤاد المهندس، من ألحان محمد الموجي.
وتقول فيه صباح: "الراجل ده هايجنني.. ييجي رمضان وخْناقُه يزيد.. عايز طباخّة سكة حديد". ويرد المهندس قائلا: "يا خواتي صايم وراجل شقيان، ومراتي عايزة تجوعني حتى في رمضان".
ويعد هذا الدويتو من أشهر الأغاني المصورة التي تتناول فكرة المناكفة بين الأزواج فيما يتعلق بطعام الإفطار في رمضان.
إذا كانت رؤية الهلال مدعاة للترحيب بشهر رمضان، فإن اكتمال القمر يؤذن أيضا بالتأهب لتوديعه. وقد عبّر عن ذلك الشاعر عبد الفتاح مصطفى، وغنّتْ شريفة فاضل من ألحان عبد العظيم محمد أشهر أغنية في وداع رمضان، وهي "تم البدر بدري.. والأيام بتجرى.. والله لسه بدري والله يا شهر الصيام".
كما أنشد محمد رشدي من كلمات محمد الشهاوي وألحان حسين فوزي أغنية "يا بركة رمضان خليكي .. خليكي في الدار".
وقد شدا محمد قنديل بكلمات عبد الوهاب محمد وألحان جمال سلامة "رمضان رمضان .. والله بعودة يا رمضان.. ياشهر العبادة، والخير والسعادة، والرضا والغفران".
وهي من الأغاني التي تعدد فضائل هذا الشهر الذي يحتل مكانة خاصة في قلوب المسلمين.

Wednesday, May 22, 2019

चर्चा में रहे लोगों से बातचीत पर आधारित साप्ताहिक कार्यक्रम

चारु चंद्र भी एक किसान हैं जिनकी स्थिति आसमान से गिरे और खजूर पर अटके वाली सी हो गई है.
उन्होंने बताया, "मैं यहीं पर पला-बढ़ा, कभी भी खेतों पर पानी नहीं जमा होता था क्योंकि ढाल दूसरी तरफ़ था. लेकिन जब यहाँ प्लांट को तोड़ा गया और मलबे को उठाया गया तो साथ में मिट्टी भी गई और मेरे खेत में अब कमर तक पानी भर जाता है.
सिंगुर भी जैसे थम सा गया है पिछले 11 सालों से. पश्चिम बंगाल के दूसरे इलाक़ों की तरह न तो यहाँ बड़ी दुकानें खुली हैं, न किसी तरह के कारख़ाने लगे हैं. स्थानीय लोगों के मुताबिक़ ज़मीनों के दाम भी ठहर गए हैं.
शहर के रेलवे स्टेशन के क़रीब मुलाक़ात मैनाक हाज़रा से हुई जो दक्षिण भारत में एमबीए के छात्र हैं और इन दिनों घर आए हैं.
मैनाक ने कहा, "सिंगुर में फ़ैक्टरी लगने और फिर उजड़ जाने से पहले तो हमारे राज्य की इमेज को ज़बरदस्त धक्का लगा. ये पर्सेप्शन हो गया कि बंगाल इज़ नॉट फ़ॉर इन्वेस्टमेंट. अगर एक बड़ी कंपनी जम जाती तो दूसरे एमएनसी भी आते, थोड़ी बहुत जॉब तो क्रिएट होती."
सिंगूर हुगली लोकसभा क्षेत्र के अन्तर्गत आता है और इसे ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस का गढ़ कहा जाता है.
तृणमूल पिछले दो लोकसभा चुनावों में इस सीट को जीत रही है और सीपीएम यहाँ दूसरे नम्बर पर रही है.
इस बार भाजपा ने इस सीट से फ़िल्म ऐक्ट्रेस लौकेट चटर्जी को उतारा है जिन्होंने अपने चुनाव प्रचार सिंगूर से ही शुरू किया.
उन्होंने ग्रामीणों से कहा, "तृणमूल ने आपको कहीं का नहीं छोड़ा. मुझे पता है आप लोग ममता बनर्जी से नाराज़ हैं. मुझे यानी भाजपा को वोट दीजिए, मोदी जी को दोबारा प्रधानमंत्री बनवाइए फिर देखिए इस जगह ख़ुशहाली लौट आएगी".
कुछ स्थानीय भी जो मानते हैं कि सिंगुर मामले पर सभी ने राजनीतिक रोटियाँ तो सेक लीं, लेकिन फिर यहाँ से आगे भी बढ़ गए.
डॉक्टर उदयन दास सिंगूर टाउन के मशहूर डॉक्टर हैं जिनके यहाँ मरीज़ों की लंबी कतार लगी रहती है.
उन्होंने कहा, "सिंगूर एक ऐसा आंदोलन साबित हुआ जिससे फ़ायदा सिर्फ़ नेताओं को हुआ, आम लोगों की तकलीफ़ें कम होने के बजाय बढ़ ही गईं. जिन किसानों को मुआवज़ा नहीं मिल सका उन्हें सरकार हर महीने 2000 रुपए और दो रुपए प्रति किलो के रेट से 16 किलो चावल दे रही है. अब ये सोचिए कि अगर वो अपनी ज़मीन में धान उगा रहा होता तो कितने फ़ायदे में होता".
लेकिन सिंगूर से पिछले दो लोक सभा चुनावों से भारी मतों से जीतने वाली तृणमूल की उम्मीदवार रत्ना डे नाग के मुताबिक़, "सभी विपक्षी दल जानते हैं ममता दी ने सिंगूर और नंदीग्राम के लिए क्या किया है. यही वजह है कि हमारा जीतने का मार्जिन बढ़ता जा रहा है और आम लोगों का समर्थन भी. भाजपा वालों का काम है सिर्फ़ दुष्प्रचार करना".